स्वप्न मेरे: किताब का एक पन्ना

सोमवार, 2 दिसंबर 2019

किताब का एक पन्ना


“कोशिश – माँ को समेटने की” तैयार है ... कुछ ही दिनों में आपके बीच होगी. आज एक और “पन्ना” आपके साथ साझा कर रहा हूँ ... आज सोचता हूँ तो तेरी चिर-परिचित मुस्कान सामने आ जाती है ... मेरे खुद के चेहरे पर ...  

कहते हैं गंगा मिलन
मुक्ति का मार्ग है

कनखल पे अस्थियाँ प्रवाहित करते समय
इक पल को ऐसा लगा
सचमुच तुम हमसे दूर जा रही हो ...

इस नश्वर सँसार से मुक्त होना चाहती हो
सत्य की खोज में
श्रृष्टि से एकाकार होना चाहती हो

पर गंगा के तेज प्रवाह के साथ
तुम तो केवल सागर से मिलना चाहती थीं
उसमें समा जाना चाहती थीं

जानतीं थीं
गंगा सागर से अरब सागर का सफर
चुटकियों में तय हो जाएगा   
उसके बाद तुम दुबई के सागर में
फिर से मेरे करीब होंगी ...   

किसी ने सच कहा है
माँ के दिल को जानना मुश्किल नहीं ...
 
(१३ वर्षों से दुबई रहते हुवे मन में ऐसे भाव उठना स्वाभाविक है)
(अक्तूबर ३, २०१२)
#कोशिश_माँ_को_समेटने_की

59 टिप्‍पणियां:

  1. माँ के लिए आपके मन का असीम स्नेह आपके लेखन में सदैव झलकता है..मन प्रसन्न हो जाता है इतनी सुन्दर भावाभिव्यक्ति पढ़ कर । लाजवाब सृजन ।

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    1. माँ के प्रति अगाध स्नेह ही छलकता देखा है अक्सर आपकी रचनाओं में अरब सागर से दुबई का सागर और माँ का सामीप्य.. यहाँ पुन: नेह को ही पहचाना । भूल गई पुण्य स्मृति के भाव को ..माँ को सादर नमन 🙏 असीम स्नेह है मुझे माँ शब्द से ।

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    2. आपका बहुत आभार मीना जी ... ये रचना मन की भावनाएं हैं ... शायद मेरी पोस्ट से कहीं ऐसा लग रहा है की माँ की पुन्य स्मृति आज है ... जबकि ऐसा नहीं है वो अगस्त में होती है ...

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  2. मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ भावपूर्ण अभिव्यक्ति सर।

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  3. माँ का दिल जानना इसलिए तो आसान है क्योंकि वह अपने दिल जैसा ही होता है, वहाँ दो हैं ही नहीं, माँ की पुण्य स्मृति को सादर नमन !

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    1. जी सच कहा है ... दिल तो एक ही होता है ...
      आभार आपका ...

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 02 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. माँ के लिए आपकी भावनाएं जो कविता का रूप लेती हैं उन्हें पढ़कर आखें नम हो जाती हैं ,माँ के आशीर्वाद से आपकी लिखी पुस्तक को भी पूरा सम्मान मिलेंगे ,मेरी भी ढेरों शुभकामनाएं ,सादर नमन

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  6. कण कण बूँद बूँद में है माँ । सुन्दर।

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  7. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (03-12-2019) को "तार जिंदगी के" (चर्चा अंक-3538) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!

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  8. जानतीं थीं
    गंगा सागर से अरब सागर का सफर
    चुटकियों में तय हो जाएगा
    उसके बाद तुम दुबई के सागर में
    फिर से मेरे करीब होंगी ...
    सच कहा ममता के बंधन में बंधी मां कहाँँ मुक्ति चाहती है...माँ तो अपने आँचल की छाँव में अपने बच्चों सदा सहेजे रखती है मृत्यु के बाद भी...।
    बहुत ही भावपूर्ण सृजन


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    1. सच लिखा है आपने माँ ऐसी होती है ...
      आपका बहुत आभार 🙏🙏🙏

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  9. बहुत ही लाजवाब कल्पना दिगम्बर जी | माँ के सामीप्य की ये अथाह कामना शब्दों में ढल गयी | अरब सागर से दुबई तक माँ को जोड़ना बहुत ही हृदयस्पर्शी चिंतन है | माँ की महिमा यूँ तो कोई कलम लिखने में सक्षम नहीं , पर फिर भी माँ जब शब्दों में समाती है तो मन और आँखें दोनों नम हो जाते हैं | भावपूर्ण रचना के लये हार्दिक शुभकामनायें |

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    1. सच है क़लम से मॉ के व्यक्तित्व को उतार पाना सम्भव नहीं है ... पर कई बार कुछ लिख कर माँ के क़रीब होने का अहसास ज़रूर कर लेता है ...
      आपका बहुत आभार है ... 🙏🙏🙏

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  10. माँ के स्मरण मात्र से ही आँखों में प्रेम के आंसू भर आते हैं। भावुक रचना।

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  11. बेहद हृदयस्पर्शी रचना आदरणीय 👌

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  12. जानतीं थीं
    गंगा सागर से अरब सागर का सफर
    चुटकियों में तय हो जाएगा
    उसके बाद तुम दुबई के सागर में
    फिर से मेरे करीब होंगी ... बहुत ही भावपूर्ण सृजन
    सादर

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  13. माँ की व्याप्ति इतनी विस्तृत हो गई है कि अब उनका सामीप्य, कहीं भी रहें,अनुभव करना संभव हो जायेगा.

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  14. Behad shandaar kavita hai aapki. Mai bhav-vibhor ho gya jab maine ise padha pahli baar. ye behad prempurn hai.

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  15. बच्चे को माँ कभी अकेला नहीं नहीं छोड़ती.

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  16. पर गंगा के तेज प्रवाह के साथ
    तुम तो केवल सागर से मिलना चाहती थीं
    उसमें समा जाना चाहती थीं

    जानतीं थीं
    गंगा सागर से अरब सागर का सफर
    चुटकियों में तय हो जाएगा
    उसके बाद तुम दुबई के सागर में
    फिर से मेरे करीब होंगी ...

    किसी ने सच कहा है
    माँ के दिल को जानना मुश्किल नहीं ...
    माँ को शायद इससे बेहतरीन शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता।  भावनाओं का ऐसा ज्वार जो सिर्फ शब्दों से निकला है , शानदार और अदभुत भावनात्मक कृति है दिगंबर जी !!

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