स्वप्न मेरे: क्या सच में ...

सोमवार, 25 मई 2020

क्या सच में ...


अध्-खुली नींद में रोज़ बुदबुदाता हूँ
एक तुम हो जो सुनती नहीं

हालांकि ये चाँद, सूरज ... ये भी नहीं सुनते

और हवा ...  
इसने तो जैसे “इगनोरे” करने की ठान ली है    

ठीक तुम्हारी तरह

धुंधले होते तारों के साथ
उठ जाती हो रोज मेरे पहलू से 
कितनी बार तो कहा है  
जमाने भर को रोशनी देना तुम्हारा काम नहीं

खिलता है कायनात में जगली गुलाब कहीं
उगता है रोज़ सूरज के नाम से
आकाश की बादल भरी ज़मीन पर

अरे सुनो ... कहीं तुम ही तो ...
इसलिए तो नहीं उठ जाती रोज़ मेरे पहलू से मेरे ... ?

#जंगली_गुलाब

54 टिप्‍पणियां:

  1. इश्क में ही तो वह ताकत है जो जमाने भर को राह दिखाए, दिखाए ही नहीं उस पर चलने का हौसला भी दे, तो जो जंगली गुलाब हो वह फलक का आफताब भी हो इसमें हैरानी कैसी !

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  2. पूरी सृष्टि का सार ढाई अक्षर की असीम ताकत में समाया
    है इसी भाव को प्रकट करती जंगली गुलाब की एक और नायाब कड़ी ।

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  3. खिलता है कायनात में जगली गुलाब कहीं
    उगता है रोज़ सूरज के नाम से
    आकाश की बादल भरी ज़मीन पर
    बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26 -5 -2020 ) को "कहो मुबारक ईद" (चर्चा अंक 3713) पर भी होगी,
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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  5. वाह.. अद्भुत... बहुत सुंदर प्रेमाभिव्यक्ति

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  6. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 26 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. धुंधले होते तारों के साथ
    उठ जाती हो रोज मेरे पहलू से
    कितनी बार तो कहा है
    जमाने भर को रोशनी देना तुम्हारा काम नहीं.....
    वाह ! वाह ! कितना खूबसूरत खयाल है, कितना प्यारा उलाहना है।

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  8. बहुत खूबसूरत खयाल बहती हुई सी...इसलिए तो नहीं उठ जाती रोज़ मेरे पहलू से मेरे..

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  9. आदरणीय नसवा जी, आपके जंगली गुलाब की चाहत हमें अवश्य ही पागल कर देगी। हर बार पढता हूँ और हर बार ईश्क कर बैठता हूँ । कहीं आपको जलन तो नहीं हुई न?
    बहुत ही सुंदर । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।

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    1. हा हा ... ये जंगली गुलाब हर किसी का अपना ही होता है ...

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  10. सब रंग प्रेम मे एक से लगते हैं
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  11. खिलता है कायनात में जगली गुलाब कहीं
    उगता है रोज़ सूरज के नाम से
    आकाश की बादल भरी ज़मीन पर
    वाह!!!!
    बहुत ही लाजवाब हमेशा की तरह...
    जंगली गुलाब के रहस्य के साथ।

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  12. दिगंबर नासवा जी
    सादर नमस्ते

    अध्-खुली नींद में रोज़ बुदबुदाता हूँ
    एक तुम हो जो सुनती नहीं

    जंगली गुलाब की ये खासियत है इक बार जिस ज़मीन में जड़ें पसार के फिर अच्छे से फ़ैल जाता है और फिर गहरे गुलाबी फूलों और अपनी सुगंध से सराबोर का देता है

    आपकी कलम पर आजकल जंगली गुलाब ने कब्ज़ा कर लिया है और क्या खूब रंग बिखेर रहा हैं

    गहरी गुलाबी रचना






    कोविड -१९ के इस समय में अपने और अपने परिवार जनो का ख्याल रखें। .स्वस्थ रहे।

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  13. बहुत आभार ज़ोया जी ....
    आप भी अपना ख्याल रहे कोविड १९ से बचाव करें ...

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  14. प्यार से परिपूर्ण बहुत ही सुंदर रचना, दिगंबर भाई।

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  15. वाह !बहुत ही खूबसूरत एहसास सजोया है आपने आदरणीय सर.
    सादर

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  16. वाह , कितनी कोमल ,स्नेहिल और उदार दृष्टि है . शब्द नहीं इसके लिये ..

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  17. अति उत्तम ,संवेदनशील प्यारी रचना,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,

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  18. किसी की ऐसी ही सघन मौजूदगी ही है जो हमें थामे रहता है ।

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  19. और हवा ...
    इसने तो जैसे “इगनोरे” करने की ठान ली है


    ये कैसे संभव है. कैफ़ी साब ने कहा है -

    चाँद सूरज बुजुर्गों के नक़्शे कदम
    खैर बुझने दो इनको हवा तो चले

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    1. मनमानी भी तो करती है हवा अपनी ... अच्छा विस्तार देती है आपकी बात रचना को ..
      बहुत आभार आपका ...

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  20. खिलता है कायनात में जगली गुलाब कहीं
    उगता है रोज़ सूरज के नाम से
    आकाश की बादल भरी ज़मीन पर
    प्रशंसनीय।  कल्पना शक्ति को सौ सौ परनाम 

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