बुधवार, 7 अप्रैल 2021
कन्धे पे अपने भार उठाएँ ... मुझे न दें ...
ले कर गुलाब रोज़
ही आएँ …
मुझे न दें.
बुधवार, 31 मार्च 2021
चले भी आओ के दिल की खुली हैं दीवारें ...
ये सोच-सोच के हैरान सी हैं दीवारें
घरों के साथ ही
दिल में खिची हैं दीवारें
लगे जो जोर से धक्के गिरी
हैं दीवारें
कदम-कदम जो चले खुद हटी हैं दीवारें
सभी ने मिल के ये
सोचा तो कामयाबी है
जहाँ है सत्य
वहीं पर झुकी हैं दीवारें
इन्हें तो तोड़ ही
देना अभी तो हैं कच्ची
हमारे बीच जो
उठने लगी हैं दीवारें
ये सच है खुद ही
इसे आजमा के समझोगे
छुआ जो इश्क़ ने
दिल से मिटी हैं दीवारें
ये बोलती हैं कई
बार कुछ इशारों से
छुपा के राज़ कहाँ
रख सकी हैं दीवारें
यहीं पे शाल टंगी
थी यहाँ पे थी फोटो
किसी की याद से
कितना जुड़ी हैं दीवारें
किसी ने बीज यहाँ
बो दिए हैं नफरत के
सुना है शह्र में
तबसे उगी हैं दीवारें
तुम्हें दिया है
निमंत्रण तुम्हें ही आना है
चले भी आओ के दिल
की खुली हैं दीवारें
मंगलवार, 23 मार्च 2021
छू लिया तुझको तो शबनम हो गई ...
सच की जब से रौशनी कम हो गई.
झूठ की आवाज़ परचम हो गई.
दिल का रिश्ता है, में
क्यों न मान लूं,
मिलके मुझसे आँख जो नम हो गई.
कागज़ों का खेल चालू हो गया,
आंच बूढ़े की जो मद्धम हो गई.
मैं ही मैं बस सोचता था आज
तक,
दुसरे “मैं” से मिला हम हो
गई.
फूल, खुशबू, धूप, बारिश, तू-ही-तू,
क्या कहूँ तुझको तु मौसम हो गई.
बूँद इक मासूम बादल से गिरी,
छू लिया तुझको तो शबनम हो गई.
शुक्रवार, 19 मार्च 2021
चम्मच कहीं नहीं था शरबत घोला जब ...
होट बजे थे उठा जिगर में शोला जब.
नंगे पाँव चली थी कुड़ी पटोला जब.
आसमान में काले बादल गरजे थे,
झट से रिब्बन हरा-हरा सा खोला जब.
टैली-पैथी इसको ही कहते होंगे,
दिखती हो तुम दिल को कभी टटोला जब.
बीस नहीं मुझको इक्किस ही लगती हो,
नील गगन के चाँद को तुझसे तोला जब.
इश्क़ लिखा था जंगली फूल के सीने पर,
बैठा, उड़ा, हरी तितली का टोला जब.
चूड़ी में, आँखों में, प्रेम की हाँ ही थी,
इधर, उधर, सर कर के ना-ना बोला जब.
चीनी सच में थी या ऊँगली घूमी थी,
चम्मच कहीं नहीं था शरबत घोला जब.
बुधवार, 10 मार्च 2021
तीरगी के शह्र आ कर छूट, परछाई, गई ...
पाँव दौड़े, महके रिब्बन, चुन्नी
लहराई, गई.
पलटी, फिर पलटी, दबा कर होंठ शरमाई, गई.
खुल गई थी एक खिड़की कुछ हवा के जोर से,
दो-पहर की धूप सरकी, पसरी सुस्ताई, गई.
आसमां का चाँद, मैं भी, रूबरू तुझसे
हुए,
टकटकी सी बंध गई, चिलमन जो
सरकाई, गई.
यक-ब-यक तुम सा ही गुज़रा, तुम नहीं तो
कौन था,
दफ-अतन ऐसा लगा की बर्क यूँ आई, गई.
था कोई पैगाम उनका या खुद उसको इश्क़ था,
एक तितली उडती उडती आई, टकराई, गई.
जानती है पल दो पल का दौर ही उसका है बस,
डाल पर महकी कलि खिल आई, मुस्काई, गई.
दिन ढला तो ज़िन्दगी का साथ छोड़ा सबने ज्यूँ,
तीरगी के शह्र आ कर छूट, परछाई, गई.
बुधवार, 24 फ़रवरी 2021
हम नई कहानी सबको पेलते रहे ...
लोग तो चले गए
मगर पते रहे.
याद के बुझे से
तार छेड़ते रहे.
जल गया मकान
हाथ सेकते रहे.
सब तमाशबीन बन
के देखते रहे.
इस तरफ तो कर
दिया इलाज़ दर्द का,
और घाव उस तरफ
कुरेदते रहे.
फर्श पे गिरे
हैं अर्श से जो झूठ के,
ख़्वाब इतने साल
हमें बेचते रहे.
हार तय थी दिल
नहीं था मानता मगर.
उनकी इक नज़र पे
दाव खेलते रहे.
चिंदी चिंदी खत
हवा के नाम कर दिया,
इस तरह से दिल
वो मेरा छेड़ते रहे.
वो गए तो सबने
पूछा माज़रा है क्या,
हम नई कहानी
सबको पेलते रहे.
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021
सुर्ख होठों पे आग़ सी ना हो ...
गम न हो गम ख़ुशी
ख़ुशी ना हो.
रब करे ऐसी ज़िन्दगी
ना हो.
रेत पर लिख दिया
तुझे उस दिन,
ख्वाहिशों की वहाँ
नदी ना हो.
चुप से आँसू हँसी में क्यों छलके,
मुसकराहट ये
खोखली ना हो.
नींद कमबख्त दूर
है बैठी,
रात पहलू में
जागती ना हो.
खुशबुओं से महक
उठा मौसम,
तू कहीं पास ही
खड़ी ना हो.
कितने सपने हैं बन्द
बस्तों में,
परवरिश में कहीं
कमी ना हो.
लफ्ज़ दर लफ्ज़ जल
गया लम्हा,
सुर्ख होठों पे आग़
सी ना हो.
शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021
नाचती लहरों से मैं ऊँचाइयाँ ले जाऊँगा ...
आपका गम आपकी रुस्वाइयाँ ले जाऊँगा.
देखते ही देखते परछाइयाँ ले जाऊंगा .
आपने मुझको कभी माना नहीं अपना मगर,
ज़िन्दगी से आपकी कठिनाइयाँ ले जाऊँगा.
हाथ से
छू कर कभी महसूस तो कर लो हमें,
आपके सर
की कसम तन्हाइयाँ ले जाऊँगा.
आपकी महफ़िल में आकर आपके पहलू से
में,
शोख नज़रों से
सभी अमराइयाँ ले जाऊँगा.
प्रेम की
बगिया कभी खिलने नहीं देते हें जो,
वक़्त के
पन्नों से वो सच्चाइयाँ ले जाऊँगा.
साहिलों पे डर न जाना देख कर लहरों को तुम,
नाचती लहरों से मैं ऊँचाइयाँ ले जाऊँगा.
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021
कैसे कह दूँ की अब घात होगी नही ...
तुम झुकोगे नहीं बात होगी नही.
ज़िन्दगी भर मुलाक़ात होगी नही.
थाम लो हाथ किस्मत से मिलता है ये,
उम्र भर फिर ये सौगात होगी नही.
आज मौका मिला है तो दामन भरो,
फिर ये खुशियों की बरात होगी नहीं.
धूप ने है बनाया अँधेरों में घर,
देखना अब कभी रात होगी नही.
दिल में नफरत के दीपक जो जलते रहे,
मीठे पानी की बरसात होगी नही.
सच के साहस के आगे टिके रह सके,
झूठ की इतनी औकात होगी नही.
घर के बाहर है दुश्मन तो अन्दर भी है,
कैसे कह दूँ की अब घात होगी नही.
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