ज़िन्दगी भी रेत सी फिसल गई ...
पीठ तेरी नज्र से जो जल गई.
ज़िन्दगी तब से ही हमको छल गई.
रौशनी आई सुबह ने कह दिया,
कुफ्र की जो रात थी वो ढल गई.
मुस्कुराए हम भी वो भी हंस दिए,
मोम की दीवार थी पिघल गई.
रात भर कश्ती संभाले थी लहर,
दिन में अपना रास्ता बदल गई.
इस तरफ कूआं तो खाई उस तरफ,
बच के किस्मत बीच से निकल गई.
जब तलक ये दाड़ अक्ल का उगा,
ज़िन्दगी भी रेत सी फिसल गई.
वाह!
जवाब देंहटाएंजब तलक ये दाड़ अक्ल का उगा,
ज़िन्दगी भी रेत सी फिसल गई...गज़ब का सृजन सर।
वाह! बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत खूब ! अति सुन्दर !!!
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-1-21) को "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि"(चर्चा अंक-3951) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
इस तरफ कूआं तो खाई उस तरफ,
जवाब देंहटाएंबच के किस्मत बीच से निकल गई.
वाह!!!
हमेशा की तरह एक और नायाब गजल...
एक से बढ़कर एक शेर।
बहुत बहुत सुन्दर गजल
जवाब देंहटाएंउम्दा शेरों से सजी एक बेहतरीन ग़ज़ल का तोहफ़ा देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद दिगम्बर नासवा जी..
जवाब देंहटाएंसुन्दर शेर
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल
जिंदगी जब छलती है तो सिलसिला इसी तरह आगे बढ़ता जाता है, पहले आशा बंधती है, फिर राहें बदल जाती हैं, आसमान से निकले खजूर पर अटके वाली हालत यानि कुएं और खाई जैसी, जब समझ पाते हैं तो जिंदगी विदा लेने को खड़ी होती है। खूबसूरत अंदाज में जीवन दर्शन !
जवाब देंहटाएंजब तलक ये दाड़ अक्ल का उगा,
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी भी रेत सी फिसल गई.
कड़वी सच्चाई व्यक्त करती रचना।
इस तरफ कूआं तो खाई उस तरफ,
जवाब देंहटाएंबच के किस्मत बीच से निकल गई.
जब तलक ये दाड़ अक्ल का उगा,
ज़िन्दगी भी रेत सी फिसल गई.
सच है जिंदगी को समझना आसान नहीं किसी के लिए भी
बहुत सुन्दर रचना
Very Nice your all post. I Love it.
जवाब देंहटाएंफ़्लर्ट शायरी
वाह!!दिगंबर जी ,क्या बात है !बहुत ही उम्दा । सही है अक्ल दाढ़ निकलते-निकलते फिसल ही जाती है जिंदगी .....।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब....
जवाब देंहटाएंइस शानदार ग़ज़ल के लिए साधुवाद 🙏
बहुत ही सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंमुस्कुराए हम भी वो भी हंस दिए,
जवाब देंहटाएंमोम की दीवार थी पिघल गई.
सुन्दर ग़ज़ल....
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंउम्दा !
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत कृति
जवाब देंहटाएंमुस्कुराए हम भी वो भी हंस दिए,
जवाब देंहटाएंमोम की दीवार थी पिघल गई.
...................
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है सर। आपको बधाई।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंरात भर कश्ती संभाले थी लहर,
जवाब देंहटाएंदिन में अपना रास्ता बदल गई.
वाह
हर शेर लाजवाब नासवा जी ।
जवाब देंहटाएंगहरा दर्शन समेटे लाजवाब ग़ज़ल।
बेहतरीन।
हर शे'र की दूसरी पंक्ति किसी अंजाम तक ले जाती है. इसने तो कमाल किया-
जवाब देंहटाएंइस तरफ कूआं तो खाई उस तरफ,
बच के किस्मत बीच से निकल गई.
aapne bahut hee badhiya content likha hai yek baar mera content padh kar reply jarur dena
जवाब देंहटाएंGulzar ki shayari quotes
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बेहतरीन 👌👌
जवाब देंहटाएंWow this is fantastic article. I love it and I have also bookmark this page to read again and again. Also check bike status
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंमुस्कुराए हम भी वो भी हंस दिए,
मोम की दीवार थी पिघल गई.,,',,,,,,,क्या बात है सर बहुत सुंदर ,काश के हर दीवार मोम की हो ।