स्वप्न मेरे: कन्धे पे अपने भार उठाएँ ... मुझे न दें ...

बुधवार, 7 अप्रैल 2021

कन्धे पे अपने भार उठाएँ ... मुझे न दें ...

ले कर गुलाब रोज़ ही आएँ मुझे न दें.
गैरों का साथ यूँ ही निभाएँ मुझे न दें.
 
गम ज़िन्दगी में और भी हैं इश्क़ के सिवा,
कह दो की बार बार सदाएँ मुझे न दें.
 
इसको खता कहें के कहें इक नई अदा,
हुस्ने-बहार रोज़ लुटाएँ मुझे न दें.
 
सुख चैन से कटें जो कटें जिंदगी के दिन,
लम्बी हो ज़िन्दगी ये दुआएँ मुझे न दें.
 
शायद में उनके इश्क़ के काबिल नहीं रहा, 
आखों से वो शराब पिलाएँ ... मुझे न दें.
 
खेलें वो खेल इश्क़ में पर दर्द हो मुझे,
उनका है ये गुनाह सज़ाएँ ... मुझे न दें.
 
उम्मीद दोस्तों से नहीं थी, मगर था सच,
हिस्सा मेरा वो रोज़ उठाएँ ... मुझे न दें.
 
खुशबू भरे वो ख़त जो मेरे नाम थे लिखे,
खिड़की से रोज़ रोज़ उड़ाएँ ... मुझे न दें.
 
देखा है ज़िंदगी में पिता जी को उम्र भर,
कन्धे पे अपने भार उठाएँ ... मुझे न दें.

22 टिप्‍पणियां:

  1. खुशबू भरे वो ख़त जो मेरे नाम थे लिखे,
    खिड़की से रोज़ रोज़ उड़ाएँ ... मुझे न दें.

    आज तो कुछ अलग ही मूड है ग़ज़ल का ...

    देखा है ज़िंदगी में पिता जी को उम्र भर,
    कन्धे पे अपने भार उठाएँ ... मुझे न दें.

    ये शेर आज के सच को कहता हुआ ....

    बहुत मर्मस्पर्शी ग़ज़ल .

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  2. एक नायब रचना आदरणीय दिगम्बर जी जिसके सभी शेर ह्रदय को स्पर्श का निकल गये | यूँ तो हर शेर की अपनी कीमत है पर एक अनमोल शेर में मुझे अपने आदरणीय ससुर जी की छवि हुबहू नज़र आई जिन्हें हमेशा मैंने इसी रूप में देखा है जैसा आपने लिखा --
    देखा है ज़िंदगी में पिता जी को उम्र भर,
    कन्धे पे अपने भार उठाएँ ... मुझे न दें.
    सच में पिता ऐसे ही होते हैं | मेरे ससुर जी आज भी उम्र के पिचहत्तरवें साल में भी समस्त परिवार की जिम्मेवारी को बड़ी आत्मीयता से संभाल रहे हैं और हमेशा हर कार्य खुद करने को तत्पर रहते हैं ताकि बच्चे निश्चिन्त रहें | आभार कहूँ तो पर्याप्त ना होगा | हार्दिक शुभकामनाएं इस अमूल्य रचना के लिए | सादर

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  3. वाह-वाह...।
    पूरी की पूरी वेदना ग़ज़ल के अशआरों में उडेल दी...
    आपने तो।

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  4. बहुत बहुत सुन्दर अमूल्य गजल । बहुत शुभ कामनाएं

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  5. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 08 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 09-04-2021) को
    " वोल्गा से गंगा" (चर्चा अंक- 4031)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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  7. वाह ! कभी शिकायत, कभी चाहत तो कभी आदत से की गयी इल्तजा, पर शब्द हर बार वही.. मुझे न दें, एक बेहद उम्दा रचना !

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  8. देखा है ज़िंदगी में पिता जी को उम्र भर,
    कन्धे पे अपने भार उठाएँ ... मुझे न दें.---बहुत खूबसूरत पंक्तियां हैं

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  9. वाह!दिगंबर जी ,हर एक शेर लाजवाब ।

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  10. ज़िंदगी का भार तो चाहते ना चाहते हुए भी सभी को उठाना ही पड़ता है,सुंदर प्रस्तुति।

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  11. हर शेर बहुत ही लाजबाब है, दिगम्बर भाई।

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  12. बेहद शानदार सर।
    प्रभावशाली भाव एवं नवीनतम प्रयोग।
    सादर।

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  13. देखा है ज़िंदगी में पिता जी को उम्र भर,
    कन्धे पे अपने भार उठाएँ ... मुझे न दें.
    ये मुझे न देना भी कितना खटकता है न.. कोई प्यार से नहीं दे रहा तो उसकी परवाह में तो कोई नफरत से न दें तो खुद के लिए...
    बहुत ही लाजवाब हमेशा की तरह...
    वाह!!!

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  14. एक बिल्कुल अनोखा और नया अंदाज़ आपका!! वाह...!!!

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  15. A good informative post that you have shared and thankful your work for sharing the information. I appreciate your efforts. this is a really awesome and i hope in future you will share information like this with us leave me alone quotes

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  16. बहुत बहुत सुंदर,बेहतरीन सृजन ।।।

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है