स्वप्न मेरे: वक़्त ने करना है तय सबका सफ़र

बुधवार, 15 सितंबर 2021

वक़्त ने करना है तय सबका सफ़र

उम्र तारी है दरो दीवार पर.
खाँसता रहता है बिस्तर रात भर.
 
जो मिला, मिल तो गया, बस खा लिया,
अब नहीं होती है हमसे न-नुकर. 
 
सुन चहल-कदमी गुज़रती उम्र की,
वक़्त की कुछ मान कर अब तो सुधर. 
 
रात के लम्हे गुज़रते ही नहीं,
दिन गुज़र जाता है खुद से बात कर.
 
सोचता कोई तो होगा, है वहम,
कौन करता है किसी की अब फिकर.
 
था खरीदा, बिक गया तो बिक गया,
क्यों इसे कहने लगे सब अपना घर.
 
मौत की चिंता जो कर लोगे तो क्या,
वक़्त ने करना है तय सबका सफ़र.


22 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 15 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. क्या बात है बेहद शानदार अ'शार हैं सारे।
    प्रयोगात्मक हर शेर नयापन लिए हुए है।
    प्रणाम
    सादर।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 16.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  4. वाह!बहुत सुंदर सर।
    लाज़वाब सृजन।
    सादर

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 16 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  6. अप्रतिम,सृजन 'वक्त ने करना है तय सबका सफ़र'बहुत खूब।

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  7. वाह! बहुत ख़ूब! वृद्धावस्था का यथार्थ वर्णन, यदि वक्त रहते ये सारी बातें कोई सीख ले तो मरने का न कोई मलाल रहेगा न ही रातें करवटें बदलते बीतेंगी, पर कोई क्या करे, वक्त पड़ने पर कुआँ खोदने की आदमी की पुरानी आदत है

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  8. ज़िन्दगी के सफर को बयाँ करती खूबसूरत ग़ज़ल ।

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  9. खाँसता रहता है बिस्तर रात भर.
    गजब!!
    हर शेर बेमिसाल।
    अनुपम।

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  10. जैसे हर शब्द से झांक रहा हो सच पर जी न मान रहा हो । कुछ ऐसा ही । लाजवाब ।

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  11. मौत की चिंता जो कर लोगे तो क्या,
    वक़्त ने करना है तय सबका सफ़र.

    सुंदर रचना।

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  12. उम्र तारी है दरो दीवार पर.
    खाँसता रहता है बिस्तर रात भर.

    जो मिला, मिल तो गया, बस खा लिया,
    अब नहीं होती है हमसे न-नुकर.

    सुन चहल-कदमी गुज़रती उम्र की,
    वक़्त की कुछ मान कर अब तो सुधर.

    वाह क्या बात है। इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।  Zee Talwara

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  13. था खरीदा, बिक गया तो बिक गया,
    क्यों इसे कहने लगे सब अपना घर.

    मौत की चिंता जो कर लोगे तो क्या,
    वक़्त ने करना है तय सबका सफ़र.

    सच वक्त आखिर में सब पर ही भारी पड़ता है , अब धरा रह जाता है जोड़ा-तोडा सब कुछ

    बहुत बेहतरीन

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  14. जीवन के सफर की सच्चाई से रूबरू कराती उम्दा गजल ।

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  15. उम्र तारी है दरो दीवार पर.
    खाँसता रहता है बिस्तर रात भर.
    अद्भुत!!!
    सोचता कोई तो होगा, है वहम,
    कौन करता है किसी की अब फिकर.
    जीवन की साँझ वृद्धावस्था का कटु सत्य पर लाजवाब गजल...
    सभी शेर बेहद उत्कृष्ट।

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  16. उम्र तारी है दरो दीवार पर.
    खाँसता रहता है बिस्तर रात भर.
    जो मिला, मिल तो गया, बस खा लिया,
    अब नहीं होती है हमसे न-नुकर.
    वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
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