स्वप्न मेरे: माँ ...

शनिवार, 25 सितंबर 2021

माँ ...

9 साल ... वक़्त बहुत क्रूर होता है ... या ऐसा कहो वक़्त व्यवहारिक होता है, प्रेक्टिकल होता है .... उसे पता होता है की क्या हो सकता है, वो भावुक नहीं होता, अगले ही पल पिछले पल को ऐसे भूल जाता है जैसे ज़िन्दगी इसी पल से शुरू हई हो ... हम भी तो जी रहे हैं, रह रहे हैं माँ के बिना, जबकि सोच नहीं सके थे तब ... एक वो 25 सितम्बर और एक आज की 25 सितम्बर ... कहीं न कहीं से तुम ज़रूर देख रही हो माँ, मुझे पता है ...   
 
कह के तो देख बात तेरी मान जाएगी
वो माँ है बिन कहे ही सभी जान जाएगी
 
क्या बात हो गयी है परेशान क्यों हूँ मैं
चेहरे का रंग देख के पहचान जाएगी
 
मुश्किल भले ही आयें हज़ारों ही राह में
हर बात अपने दिल में मगर ठान जाएगी
 
साए कभी जो रात के घिर-घिर के आएंगे
आँचल सुनहरी धूप का फिर तान जाएगी
 
खुद जो किया है उसका ज़िक्र भी नहीं किया
देखेगी पर शिखर पे तो कुरबान जाएगी 

17 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-9-21) को "जिन्दगी का सफर निराला है"((चर्चा अंक-4199) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. माँ को नमन ।
    ग़ज़ल में आपने जो कहा तो सच माँ ऐसी ही होती है ।

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  3. बहुत सुंदर मां कभी ब‍िछड़ती ही कहां है

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  4. खुद जो किया है उसका ज़िक्र भी नहीं किया
    देखेगी पर शिखर पे तो कुरबान जाएगी
    माँ जाती कहाँ हैं...साथ ही रहती है आशीर्वाद बन कर...,स्मृतियों में बसी रहती हैं सदा ।

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  5. माँ का अपनों के प्रति प्यार और आशीर्वाद सदा बना रहता है
    माँ को सपर्पित मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
    सादर नमन!

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  6. क्या बात हो गयी है परेशान क्यों हूँ मैं
    चेहरे का रंग देख के पहचान जाएगी
    सही कहा चेहरे का रंग देखके ही माँ बच्चों की परेशानी भाँप लेती है...
    खुद जो किया है उसका ज़िक्र भी नहीं किया
    देखेगी पर शिखर पे तो कुरबान जाएगी
    बस उसी शिखर पर देखना चाहती हैं माँ अपने बच्चों को...
    बहुत ही भावपूर्ण हृदयस्पर्शी सृजन।
    माँ को नमन एवं श्रद्धांजली।

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  7. खुद जो किया है उसका ज़िक्र भी नहीं किया
    देखेगी पर शिखर पे तो कुरबान जाएगी ..एक मां ही है,दुनिया में जिसकी हमसे कोई प्रतियोगिता नहीं,आपकी विजय ही उसका सपना है,सुंदर रचना,माताजी को सादर नमन 🙏💐

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  8. माँ पर दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना,दिगम्बर भाई।

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  9. बहुत बहुत सुन्दर प्रशंसनीय गजल भाई ।

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  10. माँ को समर्पित सुंदर रचना आदरणीय ।

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  11. बहुत ही सुंदर सृजन।
    एक-एक पंक्ति मन को छूती।
    नमन।
    सादर

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  12. सार्थक हृदय स्पर्शी सृजन।
    माँ के बारे मैं कौन पूरा लिख पाया पर जितना लिखा वो सब हृदय के उद्गार हैं गहरे पैंठते ।
    भावुक सृजन।
    माँ को सादर श्रद्धांजलि 🙏🏼

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  13. बहुत ही सुंदर, माँ के आगे ईश्वर भी नतमस्तक

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  14. बहुत ही भावपूर्ण रचना। माँ को कैसे शब्दों में समेटा जाये... लेकिन आपने यह दूभर कार्य भी बखूब किया।

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है