रिश्ते ...
रिश्ते कपड़े नहीं जो काम चल जाए
निशान रह जाते हैं रफू के बाद
मिट्टी बंज़र हो जाए तो कंटीले झाड़ उग आते हैं
मरहम लगाने की नौबत से पहले
बहुत कुछ रिस जाता है
हालांकि दवा एक ही है
वक़्त की कच्ची सुतली से जख्म की तुरपाई
जिसे सहेजना होता है तलवार की धार पे चल कर
संभालना होता है कांपते विश्वास को
निकालना होता है शरीर में उतरे पीलिये को
रात के घने अन्धकार से
सूरज की पहली किरण का पनपना आसान नही होता
ज़मीन कितनी भी अच्छी हो
जंगली गुलाब का खिलना भी कई बार
आसान नहीं होता ...
वाह
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१४-०५-२०२२ ) को
'रिश्ते कपड़े नहीं '(चर्चा अंक-४४३०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सराहनीय 👏👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने👌
जवाब देंहटाएं'रिश्ते कपड़े नहीं जो काम चल जाए
जवाब देंहटाएंनिशान रह जाते हैं रफू के बाद' - कविता का श्रेष्ठतम आगाज़!
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवक़्त की कच्ची सुतली से जख्म की तुरपाई गज़ब के बिंब... बेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
आसान भले न हो पर सूरज तो हर हाल में निकलता ही है, प्रेम शाश्वत है इसलिए जंगल हो या बियाबान जंगली गुलाब खिलता ही है
जवाब देंहटाएंआशा ही जीवन है, बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंरात के घने अन्धकार से
जवाब देंहटाएंसूरज की पहली किरण का पनपना आसान नही होता
अति सुन्दर ।।
सारगर्भित भावों का अद्भुत संगम।
जवाब देंहटाएंशानदार उक्तियाँ।
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसाँसों की बोझिल सफर को तय करना ही है उन चिथड़ों के साथ। लहू टपकाते हुए....
जवाब देंहटाएंहालांकि दवा एक ही है
जवाब देंहटाएंवक़्त की कच्ची सुतली से जख्म की तुरपाई
जिसे सहेजना होता है तलवार की धार पे चल कर
संभालना होता है कांपते विश्वास को
निकालना होता है शरीर में उतरे पीलिये को
और आजकल भला कौन तलवार की धार पर चलने वाला है। रिश्ते अब पीलिये से पीले पड़कर खत्म ही समझो..एकाकी जीने वालों को रिश्तों की अहमियत भी नहीं मालूम...
बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!