सोमवार, 18 जनवरी 2021
ज़िन्दगी भी रेत सी फिसल गई ...
पीठ तेरी नज्र से जो जल गई.
मंगलवार, 29 दिसंबर 2020
कभी वो आपकी, अपनी कभी सुनाते हैं
२०२० कई खट्टी-मीठी यादें ले के बीत गया ... जीवन जीने का नया अंदाज़
सिखा गया ... आप सब सावधान रहे, संयम बरतें ... २०२१ का स्वागत करें ... मेरी बहुत बहुत
शुभकामनायें सभी को ...
हमारे प्यार की वो दास्ताँ बताते हैं
मेरी दराज़ के कुछ ख़त जो गुनगुनाते हैं
चलो के मिल के करें हम भी अपने दिल रोशन
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं
किसी के आने की हलचल थीं इन हवाओं में
तभी पलाश के ये फूल खिलखिलाते हैं
झुकी झुकी सी निगाहें हैं पूछती मुझसे
ये किसके ख्वाब हैं जो रात भर जगाते हैं
कभी न प्यार में रिश्तों को आजमाना तुम
के आजमाने से रिश्ते भी टूट जाते हैं
अँधेरी रात के बादल को गौर से सुनना
कभी वो आपकी, अपनी कभी सुनाते हैं
बुधवार, 9 दिसंबर 2020
मगर फिर भी वो इठलाती नहीं है ...
कोई भी बात उकसाती नहीं है
न जाने क्यों वो इठलाती नहीं है
कभी दौड़े थे जिन पगडंडियों पर
हमें किस्मत वहाँ लाती नहीं है
मुझे लौटा दिया सामान सारा
है इक “टैडी” जो लौटाती नहीं है
कहाँ अब दम रहा इन बाजुओं में
कमर तेरी भी बलखाती नहीं है
नहीं छुपती है च्यूंटी मार कर अब
दबा कर होठ शर्माती नहीं है
तुझे पीता हूँ कश के साथ कब से
तू यादों से कभी जाती नहीं है
“छपक” “छप” बारिशों की दौड़ अल्हड़
गली में क्यों नज़र आती नहीं है
अभी भी ओढ़ती है शाल नीली
मगर फिर भी वो इठलाती नहीं है
मंगलवार, 1 दिसंबर 2020
बहुत आसान है सपने चुराना ...
नया ही चाहिए कोई बहाना.
तभी फिर मानता है ये ज़माना.
परिंदों का है पहला हक़ गगन पर,
हवा में देख कर गोली चलाना.
दरो दीवार खिड़की बन्द कर के,
किसी के राज़ से पर्दा उठाना.
सृजन
होगा वहाँ हर हल में बस,
जहाँ
मिट्टी वहां गुठली गिराना.
यहाँ आँसू के कुछ कतरे गिरे थे,
यहीं होगा मुहब्बत का ठिकाना.
लहर ले जाएगी मिट्टी बहा कर,
किनारों पर संभल कर घर बनाना.
न करना ज़िक्र सपनों का किसी से,
बहुत आसान है सपने चुराना.
सोमवार, 23 नवंबर 2020
जगमग बुलंदियों पे ही ठहरे नहीं हैं हम ...
बहला रहे हो झूठ से पगले नहीं हैं हम.
बोलो न बात जोर
से बहरे नहीं हैं हम.
हमसे जो खेलना हो
संभल कर ही खेलना,
शतरंज पे फरेब के
मोहरे नहीं हैं हम.
सोने सी लग रही हैं ये सरसों की बालियाँ,
तो क्या है जो
किसान सुनहरे नहीं हैं हम.
हरबार बे-वजह न
घसीटो यहाँ वहाँ,
मसरूफियत है,
इश्क़ में फुकरे नहीं हैं हम.
मुश्किल हमारे
दिल से उभरना है डूब के,
हैं पर समुंदरों
से तो गहरे नहीं हैं हम.
गुमनाम बस्तियों
में गुजारी है ज़िन्दगी,
जगमग बुलंदियों
पे ही ठहरे नहीं हैं हम.
मंगलवार, 10 नवंबर 2020
जो कायरों से मरोगे तो कुछ नहीं होगा ...
गुलाम बन के रहोगे तो कुछ नहीं होगा
निज़ाम से जो डरोगे तो कुछ नहीं होगा
तमाम शहर के जुगनू हैं कैद में
उनकी
चराग़ छीन भी लोगे तो कुछ नहीं होगा
समूचा तंत्र है बहरा, सभी
हैं जन गूंगे
जो आफताब भी होगे तो कुछ नहीं होगा
बदल सको तो बदल दो जहाँ की तुम किस्मत
जो भीड़ बन के चलोगे तो कुछ नहीं
होगा
कलम के साथ ज़रूरी है सबकी सहभागी
नहीं जो
मिल के लड़ोगे तो कुछ नहीं होगा
जो मौत
आ ही गयी मरना मार कर दुश्मन
जो कायरों से मरोगे तो कुछ नहीं होगा
मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020
मान लेते हैं हमारी हार है ...
आस्तीनों में छुपी तलवार है
और कहता है के मेरा यार है
गर्मियों की छुट्टियाँ भी खूब हैं
रोज़ बच्चों के लिए इतवार है
सच परोसा चासनी के झूठ में
छप गया तो कह रहा अख़बार है
चैन से जीना कहाँ आसान जब
चैन से मरना यहाँ दुश्वार है
दर्द में तो देख के राज़ी नहीं
यूँ जताते हैं की मुझ से प्यार है
खुद से लड़ने का हुनर आता नहीं
मान लेते हैं हमारी हार है
सोमवार, 19 अक्तूबर 2020
मुझे तू ढूंढ कर मुझसे मिला दे ...
मुझे इक आईना ऐसा दिखा दे.
हकीकत जो मेरी मुझको बता दे.
नदी हूँ हद में रहना सीख लूंगी,
जुदा सागर से तू मुझको करा दे.
में गीली रेत का कच्चा घरोंदा,
कहो लहरों से अब मुझको मिटा दे.
बढ़ा के हाथ कोशिश कर रहा हूँ,
ज़रा सा आसमाँ नीचे झुका दे.
में तारा हूँ चमक बाकी रहेगी,
अंधेरों में मेरा तू घर बना दे.
महक फूलों की रोके ना रुकेगी,
भले ही लाख फिर पहरे बिठा दे.
में खुद से मिल नहीं पाया हूँ अब तक,
मुझे तू ढूंढ कर मुझसे मिला दे.
सोमवार, 5 अक्तूबर 2020
उन बुज़ुर्गों को कभी दिल से ख़फा मत करना
ग़र निभाने की चले बात मना मत करना.
दिल के रिश्तों में कभी जोड़-घटा मत करना.
रात आएगी तो इनका ही सहारा होगा,
भूल से दिन में चराग़ों से दगा मत करना.
माना वादी में अभी धूप की सरगोशी है,
तुम रज़ाई को मगर ख़ुद से जुदा मत करना.
कुछ गुनाहों का हमें हक़ मिला है कुदरत से,
बात अगर जान भी जाओ तो गिला मत करना.
दिल की बातों में कई राज़ छुपे होते हैं,
सुन के बातों को निगाहों से कहा मत करना.
है ये मुमकिन के सभी ख्वाब कभी हों पूरे ,
अपने सपनों को कभी खुद से फ़ना मत करना.
ज़िन्दगी अपनी लगा देते हैं जो शिद्दत से,
उन बुज़ुर्गों को कभी दिल से ख़फा मत करना.
सोमवार, 14 सितंबर 2020
हम धुंवे के बीच तेरे अक्स को तकते रहे ...
हम सवालों के जवाबों में ही बस उलझे रहे ,
प्रश्न अन-सुलझे नए वो रोज़ ही बुनते रहे.
हम उदासी के परों पर दूर तक उड़ते रहे,
बादलों पे दर्द की तन्हाइयाँ लिखते रहे .
रोज़ हम कचरा उठा कर घर सफा करते रहे.
हम “मुनिस्पेल्टी” के नल से बारहा रिसते रहे.
और हम चूने की पपड़ी की तरह झरते रहे.
बूट की कीलों सरीखे उम्र भर चुभते रहे.
यूँ ही कल जगजीत की ग़ज़लों को हम सुनते रहे.
शैल्फ में कपड़ों के जैसे बे-सबब लटके रहे.
सोमवार, 7 सितंबर 2020
उफ़ शराब का क्या होगा ...
सच के ख्वाब का क्या होगा
इन्कलाब का क्या होगा
आसमान जो ले आये
आफताब का क्या होगा
तुम जो रात में निकले हो
माहताब का क्या होगा
इस निजाम में सब अंधे
इस किताब का क्या होगा
मौत द्वार पर आ बैठी
अब हिसाब का क्या होगा
साथ छोड़ दें गर कांटे
फिर गुलाब का क्या होगा
है सरूर
इन आँखों में
उफ़ शराब
का क्या होगा
सोमवार, 31 अगस्त 2020
तेरा जाना ट्रिगर है यादों का बंधन
सिक्कों का कुछ चाँद सितारों का बंधन.
चुम्बक है पर तेरी बाहों का बंधन.
दिन में भी तो चाँद नज़र आ जाता है,
इसने कब माना है रातों का बंधन.
तेरी आहट जैसे ही दरवाज़े पर,
खोल दिया बादल ने बूंदों का बंधन.
जो करना है अभी करो, बस अभी करो,
किसने जाना कब तक साँसों का बंधन.
तुमसे रौनक, तुमसे
रोटी, सब्जी, दाल,
वरना ये घर चार दीवारों का बंधन.
सूरज की दस्तक को कब तक ठुकराते,
टूट गया सपनों की बातों का बंधन.
कब तक तेरा साथ, वक़्त
का पता नहीं,
तेरा जाना ट्रिगर है यादों का बंधन.
सोमवार, 10 अगस्त 2020
हाथ खेतों की धान होते हैं
वो जो कड़वी ज़ुबान होते हैं,
एक तन्हा मचान होते हैं.
चुप ही रहने में है समझदारी,
कुछ किवाड़ों में कान होते हैं.
एक दो, तीन चार, बस भी करो,
लोग चूने का पान होते हैं.
उम्र है
लोन, सूद हैं सासें,
अन्न-दाता, किसान होते हैं.
गोलियाँ,
गालियाँ, खड़े तन कर,
फौज के ही जवान होते हैं.
एक टूटी सी तान होते हैं.
हाथ खेतों की धान होते हैं.
सोमवार, 3 अगस्त 2020
उसी लम्हे की बस तस्वीर है आँखों में अपनी
अधूरी ख्वाहिशें रहती हैं दरवाज़ों में अपनी
तभी तो ज़िन्दगी जीते हैं सब टुकड़ों में अपनी
तू यूँ ही बोलना मैं भी फ़कत सुनता रहूँगा
सुनो शक्कर ज़रा कम डालना बातों में अपनी
अभी तो रात ने दिन का शटर खोला नहीं है
चलो इक नींद तो लेने दो तुम बाहों में अपनी
कभी गुस्सा, झिझकना, रूठना, फिर मान जाना
हमेशा बोलती रहती हो तस्वीरों में अपनी
कहीं कमज़ोर ना कर दें बुलंदी के इरादे
समुन्दर रोक के रखना ज़रा पलकों में अपनी
ज़रुरत जब हुई महसूस हमको ज़िन्दगी में
दुआएं दोस्तों की आ गई खातों में अपनी
कई अलफ़ाज़ जब मुंह मोड़ लेते हैं बहर से
तुम्हारा नाम लिख देता हूँ बस ग़ज़लों में अपनी
सुनो इस पेड़ को मत काटना जीते जी अपने
परिंदे छुप के रहते हैं यहाँ शाखों में अपनी
झुकी पलकें दुपट्टा आसमानी चाल अल्हड़
उसी लम्हे की बस तस्वीर है आँखों में अपनी