आस्था विशवास का विस्तार क्यों नहीं
आदमी को आदमी से प्यार क्यों नहीं
भ्रमर भी है, गीत भी है, रीत भी
पुष्प में फिर गंध और श्रृंगार क्यों नहीं
पा लिया दुनिया को मैंने हार कर दिल
हार में ही जीत है तो हार क्यों नहीं
दिल के बदले दिल मिले, आंसू नहीं
इस तरह से प्यार का व्यापार क्यों नहीं
सत्य ही कहता है आईना हमेशा
आईने को खुद पर अहंकार क्यों नहीं
रविवार, 6 दिसंबर 2009
सोमवार, 30 नवंबर 2009
न्याय की आशा यहाँ परिहास है
इस व्यवस्था पर नहीं विशवास है
न्याय की आशा यहाँ परिहास है
कल जहां दंगा हुवा था नगर में
गिद्ध चील पुलिस का निवास है
बस उसी का नाम है इस जगत में
अर्थ शक्ति का जहां विकास है
समझ में आया हुई बेटी विदा जब
घर का आँगन क्यों हुवा उदास है
आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है
न्याय की आशा यहाँ परिहास है
कल जहां दंगा हुवा था नगर में
गिद्ध चील पुलिस का निवास है
बस उसी का नाम है इस जगत में
अर्थ शक्ति का जहां विकास है
समझ में आया हुई बेटी विदा जब
घर का आँगन क्यों हुवा उदास है
आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है
मंगलवार, 24 नवंबर 2009
आस्था आदर्श पर ...
जगमगाती रौशनी और शहर के आकर्ष पर
बन गए कितने फ़साने जुस्तजू संघर्ष पर
छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर
मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर
बन गयीं हवेलियाँ टूटी थि कल बस्ती जहां
खून के धब्बे नज़र आयेंगे उनके फर्श पर
गर्दनें टूटी हुयी उन पंछियों की मिल गयीं
पंख को तोले बिना जो उड़ रहे थे अर्श पर
गावं क्या खाली हुवे, ग्रहण सा लगने लगा
बाजरा, मक्की, गेहूं की बालियों के हर्ष पर
बन गए कितने फ़साने जुस्तजू संघर्ष पर
छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर
मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर
बन गयीं हवेलियाँ टूटी थि कल बस्ती जहां
खून के धब्बे नज़र आयेंगे उनके फर्श पर
गर्दनें टूटी हुयी उन पंछियों की मिल गयीं
पंख को तोले बिना जो उड़ रहे थे अर्श पर
गावं क्या खाली हुवे, ग्रहण सा लगने लगा
बाजरा, मक्की, गेहूं की बालियों के हर्ष पर
सोमवार, 16 नवंबर 2009
देश का बदला हुवा वातावरण है
एक बार फिर से हिन्दी में ग़ज़ल कहने का प्रयास है ....गुरुदेव पंकज जी के आशीर्वाद ने इसको संवारा है .... आपके स्नेह, सुझाव और आशीर्वाद की आकांक्षा है .......
आज प्रतिदिन सत्य का होता हरण है
देश का बदला हुवा वातावरण है
काश मन से भी वो होते साफ़ सुथरे
जिनके तन पर साफ़ सुथरा आवरण है
बस गयी बारूद की खुशबू हवा में
इस तरह से सड़ चुका पर्यावरण है
भूख से वो उम्र भर लड़ता रहेगा
जिसने ढूंढा ताल छंद और व्याकरण है
हैं मेरे भी मित्र क्या तुमको बताऊँ
सांप से ज्यादा विषैला आचरण है
प्रेम के दो बोल हैं सपनों की बातें
विष में डूबा आज हर अन्तःकरण है
आज प्रतिदिन सत्य का होता हरण है
देश का बदला हुवा वातावरण है
काश मन से भी वो होते साफ़ सुथरे
जिनके तन पर साफ़ सुथरा आवरण है
बस गयी बारूद की खुशबू हवा में
इस तरह से सड़ चुका पर्यावरण है
भूख से वो उम्र भर लड़ता रहेगा
जिसने ढूंढा ताल छंद और व्याकरण है
हैं मेरे भी मित्र क्या तुमको बताऊँ
सांप से ज्यादा विषैला आचरण है
प्रेम के दो बोल हैं सपनों की बातें
विष में डूबा आज हर अन्तःकरण है
मंगलवार, 10 नवंबर 2009
बिखरे शब्द ......
१)
तुम तक पहुँचने से पहले
कुछ अन्जाने शब्द
बिखर गये थे तुम्हारे रास्ते
अनदेखा कर शब्दों की चाहत
मसल दिए तुमने
उनके अर्थ, उनकी अभिव्यक्ति
उनकी चाहत, मौन अनुरक्ति
शब्दों का उमड़ता सैलाब
अब समुन्दर हो गया है
बिखरने को बेताब शब्द
अश्वथामा हो गए हैं
भटक रहे हैं तेरी तलाश में
दर बदर
सुना है द्वापर तो चला गया
कहीं कलयुग भी न गुज़र जाए .......
२)
कुरेद रहा हूँ
दिल में दबी
मुहब्बत की राख
सुना है
राख के ढेर में
चिंगारी दबी रहती है .......
तुम तक पहुँचने से पहले
कुछ अन्जाने शब्द
बिखर गये थे तुम्हारे रास्ते
अनदेखा कर शब्दों की चाहत
मसल दिए तुमने
उनके अर्थ, उनकी अभिव्यक्ति
उनकी चाहत, मौन अनुरक्ति
शब्दों का उमड़ता सैलाब
अब समुन्दर हो गया है
बिखरने को बेताब शब्द
अश्वथामा हो गए हैं
भटक रहे हैं तेरी तलाश में
दर बदर
सुना है द्वापर तो चला गया
कहीं कलयुग भी न गुज़र जाए .......
२)
कुरेद रहा हूँ
दिल में दबी
मुहब्बत की राख
सुना है
राख के ढेर में
चिंगारी दबी रहती है .......
बुधवार, 4 नवंबर 2009
प्रेम का अनुबंध है विनिमय तो होना चाहिए
हिंदी में एक ग़ज़ल कहने का प्रयास है ...... मीटर की ग़लतियों को गुरुदेव पंकज सुबीर जी ने ठीक कर दिया है ........ और एक बात आज पहली बार शाबासी भी मिली है गुरुदेव से इस ग़ज़ल की बहर पर ......
साथ है जो आपका सुखमय तो होना चाहिए
प्रेम का अनुबंध है विनिमय तो होना चाहिए
मैं कोई विचलित नहीं हूँ आपके संपर्क से
उम्र भर के साथ का निश्चय तो होना चाहिए
है भरत सक्षम चलाने के लिये शासन, मगर
राम के वनवास का निर्णय तो होना चाहिए
है ये नाटक जिंदगी का मंच पर संसार के
पात्र मिलते हैं मगर अभिनय तो होना चाहिए
जोश बस काफी नहीं है लक्ष्य पाने के लिए
राह से कुछ आपका परिचय तो होना चाहिये
साथ है जो आपका सुखमय तो होना चाहिए
प्रेम का अनुबंध है विनिमय तो होना चाहिए
मैं कोई विचलित नहीं हूँ आपके संपर्क से
उम्र भर के साथ का निश्चय तो होना चाहिए
है भरत सक्षम चलाने के लिये शासन, मगर
राम के वनवास का निर्णय तो होना चाहिए
है ये नाटक जिंदगी का मंच पर संसार के
पात्र मिलते हैं मगर अभिनय तो होना चाहिए
जोश बस काफी नहीं है लक्ष्य पाने के लिए
राह से कुछ आपका परिचय तो होना चाहिये
मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009
प्रेम की ये कैसी इब्तदा
कभी कभी बातों ही बातों में मन के आस पास उमड़ते घुमड़ते अनजाने कुछ शब्द, कोई कल्पना या रचना का रूप ले लेते हैं ..... प्रस्तुत है ऐसी ही एक रचना जो अनजाने ही उग आयी मन के आँगन में ..........
खूब है मासूम सी अदा
बोलती आँखें यदा कदा
होठ से तेरे जो निकले
गीत मैं गाता रहूँ सदा
स्पर्श से महका जो तेरे
खिल रहा वो फूल सर्वदा
ग्वाल में राधा तू मेरी
बांसुरी बजती यदा यदा
हाथ में सरसों खिली है
प्रेम की ये कैसी इब्तदा
मेघ धरती अगन वायु
कायनात तेरी सम्पदा
हूँ पथिक विश्राम कैसा
आपसे लेता हूँ मैं विदा
खूब है मासूम सी अदा
बोलती आँखें यदा कदा
होठ से तेरे जो निकले
गीत मैं गाता रहूँ सदा
स्पर्श से महका जो तेरे
खिल रहा वो फूल सर्वदा
ग्वाल में राधा तू मेरी
बांसुरी बजती यदा यदा
हाथ में सरसों खिली है
प्रेम की ये कैसी इब्तदा
मेघ धरती अगन वायु
कायनात तेरी सम्पदा
हूँ पथिक विश्राम कैसा
आपसे लेता हूँ मैं विदा
बुधवार, 21 अक्तूबर 2009
तुम तक पहुँचने से पहले
१)
तुम तक पहुँचने से पहले
लड़खड़ा कर गिर गए कुछ शब्द
घायल शब्दों की झिर्री से
बिखर गयी चाहत
बह गए एहसास
कुछ अधूरे स्वप्न
मिलन की प्यास
उफ़ ......... इन घायल शब्दों को
बैसाखी भी तो नहीं मिलती
२)
तुम तक पहुँचने से पहले
लड़खड़ा कर गिर गए कुछ शब्द
वो देखो ...........
रेत के पीली समुन्दर में
शब्दों का जंगल उग आया है
शोर से महकते जंगल को
अभिव्यक्त हो जाने की प्यास है
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
बस तेरी ही उसको तलाश है
सुना है गुज़रे मुसाफिर
लौट कर ज़रूर आते हैं
तुम तक पहुँचने से पहले
लड़खड़ा कर गिर गए कुछ शब्द
घायल शब्दों की झिर्री से
बिखर गयी चाहत
बह गए एहसास
कुछ अधूरे स्वप्न
मिलन की प्यास
उफ़ ......... इन घायल शब्दों को
बैसाखी भी तो नहीं मिलती
२)
तुम तक पहुँचने से पहले
लड़खड़ा कर गिर गए कुछ शब्द
वो देखो ...........
रेत के पीली समुन्दर में
शब्दों का जंगल उग आया है
शोर से महकते जंगल को
अभिव्यक्त हो जाने की प्यास है
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
बस तेरी ही उसको तलाश है
सुना है गुज़रे मुसाफिर
लौट कर ज़रूर आते हैं
रविवार, 18 अक्तूबर 2009
शब्दों के मायने .....
शब्दों का सिलसिला आगे बढाता हूँ .............शब्दों को शब्दों के माध्यम से कुछ अर्थ देने की कोशिश के साथ ........
शब्द शब्द शब्द
हवा में शब्द, फिजां में शब्द
ये भी शब्द, वो भी शब्द
शब्द भी शब्द, निःशब्द भी शब्द
तू भी शब्द, मैं भी शब्द
आ मायने बन कर
इस कायनात में बिखर जाएँ
शब्द शब्द शब्द
हवा में शब्द, फिजां में शब्द
ये भी शब्द, वो भी शब्द
शब्द भी शब्द, निःशब्द भी शब्द
तू भी शब्द, मैं भी शब्द
आ मायने बन कर
इस कायनात में बिखर जाएँ
शनिवार, 10 अक्तूबर 2009
शब्दों का सिलसिला ..........
अमेरिका के लम्बे प्रवास के बाद दुबई की वापसी ........ घर आने का आनंद ........ शब्दों के माध्यम से कुछ और शब्दों को सिमेटने की कोशिश .......
१)
"प्यार"
गहरा अर्थ लिए
अर्थ हीन शब्द
दीमक की तरह चाट गया
मेरे होने का अर्थ ......
२)
"मौन"
शब्द होते हुवे निःशब्द
अर्थ को अभिव्यक्त करता
निःशब्द
शब्द ......
३)
"शब्द"
होठ से निकले
तो शब्द
आँख से निकले
तो अर्थ ......
१)
"प्यार"
गहरा अर्थ लिए
अर्थ हीन शब्द
दीमक की तरह चाट गया
मेरे होने का अर्थ ......
२)
"मौन"
शब्द होते हुवे निःशब्द
अर्थ को अभिव्यक्त करता
निःशब्द
शब्द ......
३)
"शब्द"
होठ से निकले
तो शब्द
आँख से निकले
तो अर्थ ......
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